म्हालसापति – परम साईं भक्त

Mhalsapati

श्रद्धा और सबुरी – म्हालसापति

श्री साईं का ध्यान कर , साईं नीर आकार !

भक्तन भक्ति के लिए, लिए रूप साकार !!

कई बार किसी शिष्य की भक्ति इतनी आदर्श और महान बन जाती है की गुरु के साथ साथ सम्मान से उसका भी नाम लिया जाता है ऐसे ही एक परम साईं भक्त थे म्हालसापति , जब जब हम साईं बाबा को याद करते है और शिर्डी याद आती है तो साथ ही याद आते है बाबा के परम भक्त म्हालसापति , जो बाबा के साथ सबसे अधिक समय रहते थे , यंहा तक की बाबा भी स्वयं उन्हें प्यार से भगत अर्थात की सबसे प्यार शिष्य कहते थे। म्हालसापति का पूरा नाम म्हालसापति चिमनजी नगरे था , पेशे से सुनारी का कार्य करते थे।

म्हालसापति ने ही बाबा को सबसे पहले ‘आओ साईं ‘ कह कर पुकारा और उन्हें साईं नाम दिया , इनका प्यार और बाबा पर विश्वास अटूट रहा , १९८६ में बाबा ने तीन दिन के लिए अपने शरीर को छोड़ दिया और म्हालसापति के हवाले अपनी देह कर दी और कहा की अगर मै वापिस न लौटू तो मेरे शरीर को दफना देना और उन्होंने म्हालसापति को वो जगह भी बता दी , और उसके बाद न सांस थी और न ही शरीर में कोई हलचल। सभी लोगो ने सोचा की बाबा अपनी अंतिम सांस ले चुके है , डॉक्टर ने भी मान लिया था की अब बाबा , सिर्फ म्हालसापति ही थे जो परम श्रद्धेय बाबा को अपने पैरो का तकिया बना पुरे तीन दिन तक ले कर बैठे रहे , किसी को बाबा के पवन शरीर को हाथ भी नहीं लगाने दिया और उसके बाद बाबा ने वापिस शरीर धारण किया , बाबा ने उन्हें इसी लिए पूर्ण विश्वास के साथ ये लीला दिखने के लिए चुना था की वो दुनिया को म्हालसापति के जरिये श्रद्धा का पाठ पढ़ना चाहते थे , विश्वास किया जाये तो कैसा किया जाये ये दिखाना चाहते थे।

म्हालसापति उन दो खास लोगो में से एक थे जिन्हे बाबा ने हमेशा अपने साथ रखा और यंहा तक की साथ ही सोने की अनुमति भी दी , म्हालसापति मस्जिद में जमीन पर अपना कपड़ा बिछाते और आधे पर खुद सोते और आधे पर पूज्य साईं बाबा , म्हालसापति ही वो शख्स थे जिन्होंने अब के हृदय की धड़कनो में परिवर्तन महसूस किया जब बाबा नमाकरण करते थे , कितने भाग्यशाली थे म्हालसापति जो उन्हें बाबाश्री का परम सानिध्य प्राप्त हुआ , म्हालसापति जब भी मस्जिद में आने के बाद जाने का कहते , बाबा उन्हें बड़े प्यार से रोक लिया करते और जाने की अनुमति नहीं देते. यंहा तक की चावड़ी से निकलने वाले चल समारोह में भी वे बाबा की सबसे निकट रहा करते थे।

भाग्यवान म्हालसापति , तात्या पाटिल साथ !

मस्जिद में चौदह बरस , सोये दिन नाथ ! !

बाबा की दिव्या दृष्टि कितनी प्रबल थी इस का पता सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है , जब एक बार म्हालसापति नामाकरण के समय अपने पुत्र को साथ ले कर आये बाबा ने उसे देख कर कहा की इसके साथ बहुत अधिक जुड़ाव मत रखो सिर्फ २५ वर्ष तक इसका ध्यान रखो , इतना ही बहुत है , ये बात म्हालसापति को तब समझ आई जब उनके पुत्र का २५ वर्ष की आयु में देहांत हो गया और उनका उसके साथ जुड़ाव टूट गया।

Click to read a Beautiful Poem on Sai

कितने महान और भाग्य शैली हे म्हालसापति जो उन्हें परम पूज्य बाबा के पावन चरणो और गर्दन पर पवित्र चन्दन लगाने और बाबा की पूजा करने की परंपरा की शुरुआत करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

परम श्रद्धेय म्हालसापति आपसे सादर करबद्ध वंदना है , आप अपने प्रिय नाथ , जिनके सर्वाधिक निकट रहने का सौभाग्य आपको प्राप्त हुआ , से निवेदन कर उनका नाम लेने वाले और शिर्डी धाम जाने वाले हर दुखी के दुःख दूर करे और कल्याण करे।

ॐ श्री सद्गुरु साईनाथ महाराज की जय

Also read this beautiful heart Touching Story..Click

Share

Comments

Write a Reply or Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *



*