जीवन में पिता की भूमिका
भगवान श्री गणेश की प्रार्थना हर किसी कार्य के पूर्व की जाने का प्रचलन है एवं उन्हें सर्वप्रथम पूज्यनीय कहा गया है ,क्योंकि सभी देवी देवताओ में उन्होंने माता पिता स्वरूपी सृष्टि की परिक्रमा कर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की और माता-पिता को समस्त संसार में श्रेष्ठ बताया , समस्त संसार माता-पिता के महत्व को समझ कर धन्य हुआ , भगवान श्री गणेश को कोटि कोटि प्रणाम। पिता , एक ऐसा रिश्ता जो किसी भी धर्म , देश , भाषा , जाति और समाज में सदैव सामान रहता है , जिसका ध्येय इन सब बातो से ऊपर सिर्फ अपनी संतान की सुरक्षा, उसके जीवन के निर्माण और उसे अच्छी सामाजिक पृष्ठ भूमि देने का होता है। वो अपनी संतान में अपना प्रतिबिम्ब तो देखना चाहता है परन्तु अपने से अच्छी और आकर्षक छवि।
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पिता एक अस्तित्व , जिसके सानिध्य को प्राप्त करते ही एक घने बरगद की छाया में मिलने वाली शांति सा अहसास होता है , अपनी विशाल शाखाओ की छाया में सुरक्षा का अहसास प्रदान करने वाले वृक्ष जो प्रकृति की मार से कर रहे संघर्ष का अहसास छाया लेने वाले को नहीं होने देता , उसी तरह पिता सदैव संघर्ष कर अपने पुत्र के जीवन को आकार देने के लिए अपनी खुशियो का त्याग करता है। एक किशोर जो युवावस्था में पहुंच अपनी जीवन के सर्वश्रेष्ठ काल के चिर आनंद को भोगते हुए जैसे ही पितृत्व का अहसास प्राप्त करता है , उसे संयम की शक्ति , त्याग की भावना और अपनी पहचान को बांटने का सामर्थ्य प्राप्त होता है, और यही संयम उसके पुत्र को साहस प्रदान करता है , यही त्याग की भावना पुत्र के जीवन की अंश पूंजी होती है, यही पहचान उसे बहुत से रिश्ते दिलाती है , जिस पहचान और रिश्तो के जरिये वो पिता के बताये और अपनी महत्वाकांक्षाओं की प्राप्ति के मार्ग पर चलता है।
सूर्य प्रतिदिन उदित हो अपने प्रकाश से और प्रकाश में समाहित ऊर्जा से समस्त संसार को जीवन प्रदान कर और समस्त प्राणियों के जीवन को सुचारू चलने की व्यवस्था करते है , परिवार में वही स्थान पिता का होता है, जिसकी दिनचर्या अपने परिवार की सुचारू जीवन के लिए होती है , वो न सिर्फ माता को बीज प्रदान कर अपनी संतान का निर्माण करता है वरन उसे नित्य अपनी आजीविका से सींच कर एक विशाल वृक्ष बनाने में अपना पूर्ण सहयोग भी प्रदान करता है। पिता एक असीमित विषय है जिस पर जितना कहा या लिखा जाये उतना कम है , पिता की अनेक संतान हो सकती है परन्तु सभी के लिए पिता का भाव हमेशा सम होता है , यही पिता के हृदय की विशालता होती है। पिता कैसा भी हो सफल, असफल, आमिर , गरीब , शिक्षित या फिर अशिक्षित , उसका भाव अपने पुत्र को हर क्षेत्र में अपने से अधिक सफल देखने का ही होता है , मनुष्य इस रिश्ते पर आकर कितना अलग हो जाता है , यही आकर शायद उसकी प्रतियोगिता की भावना समाप्त हो जाती है। पुत्र को कई रिश्तो की सम्पूर्णता प्रदान करने वाला पिता उसे अनुभव प्रदान करने के लिए उसके बाल साथी , शिक्षक ,युवा मित्र और कई बार अंग रक्षक भी बन कर उसके व्यक्तित्व को निखरता है। यही पिता है।
कल्याणचन्द दासजी बेदी जो की मेहता कालू के नाम से भी प्रसिद्ध रहे , ये नाम है परमपूज्य गुरुनानक देव जी के पूज्य पिता का जिन्होंने सबसे पहले बाल अवस्था में ही गुरु नानकजी की प्रतिभा को पहचान लिया था और दुनिया को एक महान संत दिया। चाहे वीर शिवाजी हो या टीपू सुल्तान बिना शाहजी और हयदर अली के संघर्ष के इनके व्यक्तित्व का निर्माण संभव नहीं था। किसी भी सफल व्यक्ति का अस्तित्व उसके पिता के संघर्ष के बिना अकल्पनीय है , वो दुर्भाग्य शाली होते है जिन्हे पिता जीवन प्रदान करने के बाद का पूर्ण सानिध्य प्रदान नहीं कर पाते परन्तु फिर भी पिता पितृ के रूप में हमेशा साथ रहता है क्योंकि उसकी अपने संतान को सफल देखने की महत्वाकांक्षा उसे हमेशा देव स्वरुप में जीवित रखती है।
हर पिता अपने पुत्र को राज प्रदान नहीं कर सकता परन्तु हर पुत्र का कर्त्तव्य है की वो पिता को राजसुख प्रदान करने की हर संभव कोशिश करे।
Ph : 9755366622 / 9753000001
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