कुँए का मेंढक ना बने

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कुँए का मेंढक ना बने

हम समाज में अधिकतर देखते है की जब की कोई व्यक्ति अच्छा घर बनाता है ,  इंटीरियर करवाता है , कार खरीदता  या फिर और धन बल से कोई भी भौतिक उब्लब्धि प्राप्त करता है तो  उसको उस उपलब्धि का सर्वाधिक आनंद तब  प्राप्त होता है जब तक की वो अपने मित्र वर्ग और आपसी पहचान वालो के सिमित दायरे में उस उपलब्धि की पूरी तरह से वाह वही न लूट ले , जब उसके  पहचान वालो की सीमा समाप्त हो जाती है तब उसको शांति का अहसास होता है .

वास्तविक रूप में देखा जाये तो उन मित्रो और रिश्तेदारों के वर्ग में ऐसे कई घर या सुन्दर इंटीरियर या उस उपलब्धि के समकक्ष व कई और बड़े उदाहरण हो सकते है और न भी हो तो भी  वे  उस मित्र  की उपलब्धि को बहुत लम्बे समय तक याद नहीं रखेंगे जब तक की वो उनके लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण न हो , क्योंकि हर कसी के वर्ग समूह में ऐसे लोग उंगलियों पर गिने जाने वाले होते है जिन के लिए वो  व्यक्ति महत्वपूर्ण होता है , तो फिर इस प्रशंसा का गान क्यों ? क्योंकि अधिकतर लोगो को मतलब नहीं और मतलब है तो उसके लिए आपकी उपलब्धि सर्वश्रेष्ठ नहीं .

भोगवादी सोच का एक बड़ा नुकसान ये है की व्यक्ति  कुए के मेंढक की तरह  अपनी उपलब्धि को सिर्फ अपने मित्रो और सम्बन्धियों की उपलब्धि से ही तुलना करता है बजाये इसके की हमारी सोच के परे दुनिया में क्या क्या हो रहा है ?

कई बार तो अपनी सिमित  सोच के चलते , क्योंकि उसके दायरे में उस वक़्त सिर्फ उसकी उपलब्धि और उसका अति सिमित वर्ग समूह है , वो अपनी उपलब्धि की तूलना उन लोगो से करने लगता है जिनका स्तर उसके सामने छोटा है  , परन्तु यंहा लोगो से अपने लिए जबरदस्ती तारीफ करवाने के बजाये ये ध्यान रखा जाना चाहिए की ये समाज बहुत सारी  सतहों (layers) में बंटा है और हमारी उपलब्धि हमारे वर्ग में बड़ी  हो सकती है परन्तु हाईवे पर चल रही कार के मुताबिक हम कभी आगे नहीं हो सकते , हमेशा कोई न कोई आगे होता ही है .

मित्रो जो हमारा है ,  वो सिर्फ हमारा  है और उसकी प्रसन्नता सिर्फ  उंगलियों पर गिने जाने वाले हमारे अपने हितैषियों के साथ बांटी जा सकती है , इस प्रकार की आपकी कोई भौतिक सुख सुविधा की वस्तु जो आपने धन बल से हासिल की है सर्वश्रेष्ठ नहीं हो सकती इसलिए उस पर चंद  लोगो के सामने घमंड करने का कोई अधिकार नहीं , ये घमंड हमें समाज के सामने सिर्फ कुए का मेंढक ही साबित करेगा अतः हमेशा कोशिश करे ऐसे मौकों पर श्रेष्ठ बनने की बजाये सरल बने, वो  सबसे जोड़ने का काम करेंगी जबकि श्रेष्ठता सबसे तोड़ने का .

आशा है आप मेरे विचार से सहमत होंगे , आप भी अपने विचारों को मुझ तक भेज सकते है , मेरा email address निचे दिया है , आपकी सहमति से मैं उन्हें अपने ब्लॉग और फेसबुक के माध्यम से लोगो तक पहुंचने का प्रयास करूँगा।


पंकज उपाध्याय

इंदौर

www.pankajupadhyay.com

Email : upadhyay.pankaj2@gmail.com

 

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